Abstract:
भारतीय साहित्य, समाज, संस्कृति को पूरी संपूर्णता में व्यक्त करने तथा ‘मिशन पत्रकारिता’ के स्वरूप में समर्थ हस्तक्षेप रखने वाली महत्त्वपूर्ण पत्रिका ‘विशाल भारत’ अपने तत्कालीन परिवेश की पथ-प्रदर्शक रही है । साहित्य को प्रेमचंद जी ने कहा है कि वह ‘देशभक्ति और राजनीति के आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है’ तो इस कथन को पूरी तरह चरितार्थ करता है ‘विशाल भारत’ । ‘विशाल भारत’ अपनी संपादकीय नीति के द्वारा तथा विभिन्न साहित्यिक विधाओं की अभिव्यक्ति के माध्यम से भारत की सामासिक संकृति को तथा उसके वैश्विक चिंतन को प्रकट करता है । ‘विशाल भारत’ अपने नाम के बंधन में स्वयं को समेटता नहीं हैं बल्कि समग्र भारत के लिए जो हितकर हैं, वैसे पाश्चात्य विचारकों और साहित्यकारों के साहित्य एवं विचारों का प्रकाशन भी करता है । ‘विशाल भारत’ की संपादकीय नीतियाँ यह प्रमाणित करती हैं कि साहित्यकार भविष्यद्रष्टा होता है; हिंदी साहित्य में आज भी प्रवासी साहित्य और अस्मिता मूलक साहित्य सहजता से मुख्य धारा में सम्मिलित नहीं हो सकी है, विद्वान साहित्यकार उसके महत्त्व को वर्तमान समय में स्थापित करने में सफल हो पा रहे हैं, परंतु ‘विशाल भारत’ ने स्वतंत्रता-पूर्व ही इसपर गंभीर लेखन का प्रकाशन प्रारम्भ कर दिया था ।
‘विशाल भारत’ भारतीय जनमानस के लिए उपयुक्त नैतिक विचारों के प्रति सदैव कर्तव्यपरायण रहा । नागरिक हितों की रक्षा के लिए कभी भी किसी एक राजनीतिक विचार की पक्षधरता को पत्रिका के संपादकीय नीति या साहित्यिक लेखों में अनाधिकार प्रवेश नहीं करने दिया । ‘विशाल भारत’ ने अपने समय की समस्त धार्मिक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक गतिविधियों पर विपुल सामग्री का प्रकाशन किया तथा स्वतंत्रता संघर्ष एवं संस्कृति-निर्माण में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया । ‘विशाल भारत’ के तीनों संपादकों ने आधुनिक हिंदी साहित्य-समाज और संस्कृति को प्रभावित-पुष्पित एवं पल्लवित किया । ‘विशाल भारत’ ने स्थापित लेखकों एवं नवीन लेखकों को प्रकाशित करते हुए हिंदी साहित्य के लिए ठोस जमीन का निर्माण किया । ‘अश्लील साहित्य’ के विरोध के लिए रवीन्द्रनाथ ठाकुर व गाँधी से लेख भी लिखवाये। भारत तथा यूरोपीय देशों के बीच सांस्कृतिक सेतु स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई थी। हिंदी की राष्ट्रीय स्वीकार्यता और देशवासियों में राष्ट्रीयता की भावना को मज़बूत करने में इस पत्रिका का कोई जोड़ नहीं रहा है। गाँव, गरीब व गाँधी की अवधारणा को प्रस्तुत करते हुए जनता को ‘स्वराज’ के लिए जाग्रत करने के महत् उद्देश्य का पालन भी ‘विशाल भारत’ ने किया ।