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Hindi Upanyas : Aadiwasi Sanghrsh Aur Paristhitikiya Sankat (1990-2016)

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dc.contributor.advisor Gupta, Munni
dc.date.accessioned 2024-12-19T09:36:35Z
dc.date.available 2024-12-19T09:36:35Z
dc.identifier.uri https://www.presiuniv.ac.in en_US
dc.identifier.uri http://www.presiuniv.ndl.iitkgp.ac.in/handle/123456789/2469
dc.description.abstract बीज शब्द : पारिस्थितिकी, आदिवासी, जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, विस्थापन, विकास मॉडल प्रस्तुत शोध प्रबंध "हिंदी उपन्यास : आदिवासी संघर्ष और पारिस्थितिकीय संकट (1990-2016)" के केंद्र में मनुष्य की पूंजीवादी मानसिकता के कारण प्रकृति पर विजय पाने की आकांक्षा और उससे उत्पन्न पारिस्थितिकीय संकट है, जिसका आलोचनात्मक अध्ययन आदिवासी समुदाय के विशेष संदर्भ में प्रस्तुत किया गया है। 'पारिस्थितिकी' अथवा 'इकोलॉजी' को 'विज्ञान और समाज' को जोड़ने वाली कड़ी के रूप में जाना जाता है जिसकी परिधि में इस पृथ्वी का समस्त जैविक-अजैविक संसार शामिल है। अन्य घटकों की भांति ही मनुष्य पर भी प्रकृति के सारे नियम लागू होते हैं। लेकिन तथाकथित विकास की धुन में मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ अपने सह-अस्तित्व व साहचर्य के सम्बन्धों को नकारने का परिणाम ही आज वैश्विक स्तर पर 'पारिस्थितिकीय संकट' के रुप में मनुष्य के सर्वश्रेष्ठ होने के 'अहं' पर चोट करता नजर आता है। इस संकट का सबसे ज्यादा शिकार है आदिवासी समुदाय, क्योंकि वही प्रकृति के सबसे निकट है, और जिसके संघर्षो का इतिहास बहुत पुराना है। आदिवासी समुदाय के जीवन में प्रकृति रची-बसी है। इसकी सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक सभी परिस्थितियाँ प्रकृति पर ही निर्भर करती हैं। आदिवासी दर्शन वास्तव में 'पारिस्थितिकीय' दर्शन है जहां 'मनुष्य' प्रजाति सर्वश्रेष्ठ नहीं है। यहां जीव-जंतु, पेड़-पौधे, नदियां-पहाड़ सब समान हैं। ऐसे में प्रकृति का विनाश आदिवासी 'अस्तित्व' पर ही सवाल खड़े करता है । हिंदी आदिवासी उपन्यासों में इसी सवाल को उठाते हए पारिस्थितिकीय संकट के संदर्भ में आदिवासी संघर्षों को चित्रित किया गया है। इन उपन्यासों में, विकास के नाम पर जल, जंगल और जमीन के दोहन ने किस प्रकार पारिस्थितिक तंत्रों (स्थलीय एवं जलीय) को नुकसान पहुँचाकर प्राकृतिक असंतुलन को जन्म दिया है, किस प्रकार मनुष्य की प्रकृति से निरंतर होते छेड़छाड़ ने जलवायु-परिवर्तन, जैव-विविधता का नाश, जल संकट, मरूस्थलीकरण जैसी वैश्विक चुनौतियों को खड़ा किया है तथा किस प्रकार इन सभी परिस्थितियों ने मिलकर आदिवासियों के लिए स्वास्थ्य, जीविका विस्थापन एवं अन्ततः आदिवासी जनसंख्या हास् जैसी भयंकर समस्याओं को जन्म दिया है, की जांच-पड़ताल की गई है। इसके साथ ही विकास की अंधी दौड़ में शामिल दुनिया के तमाम देशों को देखते हुये विकास के लिये आदिवासी मॉडल का सुझाव भी दिया गया है, जो प्रकृति-हितैषी है। महुआ माँझी कहती हैं कि आदिवासी समुदाय प्रकृति और मनुष्य के बीच अन्तर्संबंध को महत्व देता है, आदिवासी को प्रकृति की सूक्ष्म समझ होती है, अतः विश्व को यदि भविष्य में होने वाले प्राकृतिक प्रकोपों से बचाना है तो हमें आदिवासी प्रकृति-दर्शन को समझते हुये प्रकृति और पारिस्थितिकीय हितैषी विकास मॉडल का विकल्प खोजना ही होगा। en_US
dc.format.mimetype application/pdf en_US
dc.language.iso hin en_US
dc.source Presidency University en_US
dc.source.uri https://www.presiuniv.ac.in en_US
dc.subject Arts and Humanities en_US
dc.subject Development project en_US
dc.subject Ecology en_US
dc.subject Religion en_US
dc.subject Tribal displacement en_US
dc.subject Tribal Panchsheel principle en_US
dc.subject Tribal survival en_US
dc.title Hindi Upanyas : Aadiwasi Sanghrsh Aur Paristhitikiya Sankat (1990-2016) en_US
dc.type text en_US
dc.rights.accessRights authorized en_US
dc.description.searchVisibility true en_US
dc.creator.researcher Pandey, Nidhi


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