आदिवासी साहित्य लेखन दो-तीन दशकों से नहीं, बल्कि लगभग सौ-डेढ़ सौ वर्ष पहले से लिखा जा रहा है। आदिवासी चिंतन का मुख्य पहलू प्रकृति की रक्षा और जीव-जगत के अस्तित्व से संबंधित है। अपनी तीव्र इच्छापूर्ति के कारण मनुष्य ने प्रकृति ...
আমাদের গবেষণার বিষয় ‘ভারতীয় ঐতিহ্যে ও সাহিত্যে শিব-সংস্কৃতির বৈচিত্র্য ও বিবর্তন (সিন্ধু সভ্যতা থেকে অষ্টাদশ শতক)’। এই কাজ করতে গিয়ে আমরা দেখাতে চেয়েছি ভারতীয় চেতনায় ও সাহিত্যে যেভাবে শিবকে পাই তার বৈচিত্র্যপূর্ণ রূপ ও ...
शोध प्रबंध “हिन्दी की स्त्री आत्मकथाएँ : अस्मिता विमर्श” विषय पर तैयार किया गया है। इसमें अस्मिता विमर्श की दृष्टि से मन्नू भण्डारी, प्रभा खेतान, मैत्रेयी पुष्पा, रमणिका गुप्ता, अमृता प्रीतम, कौशल्या बैसंत्री, सुशीला ...
भारतीय साहित्य, समाज, संस्कृति को पूरी संपूर्णता में व्यक्त करने तथा ‘मिशन पत्रकारिता’ के स्वरूप में समर्थ हस्तक्षेप रखने वाली महत्त्वपूर्ण पत्रिका ‘विशाल भारत’ अपने तत्कालीन परिवेश की पथ-प्रदर्शक रही है । साहित्य को ...
জীবনানন্দ দাশ বাংলা সাহিত্যে কবি হিসাবে পরিচিত হলেও কথা সাহিত্যে তাঁর আত্মপ্রকাশ প্রশংসার দাবি রাখে। পাশ্চাত্য শিক্ষায় শিক্ষিত জীবনানন্দ দাশ বিদেশি সাহিত্য ও সাহিত্যতত্ত্ব দ্বারা বিশেষভাবে প্রভাবিত ছিলেন, যা তাঁর লেখাতে ...
सिनेमा में दलित चेतना की अभिव्यक्ति अधिक सशक्त रूप में 1990 के बाद दिखाई देती है । मुख्यधारा के सिनेमा में वंचित तबके का दखल और उसकी भूमिका पर बात करें तो प्रभावी अभिव्यक्तियाँ कम भले हों, पर मिलती अवश्य हैं । सिनेमा लोक ...